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क्यों की जाती है दिवाली में गणेश-लक्ष्मी की पूजा?
Ganesh &lakshmi |
दिवाली के मौके पर सभी लक्ष्मी और श्रीगणपति की पूजा करते हैं लेकिन कयों यह पूजा करते हैं और इसका क्या महत्व है। इसके कई मान्यताएं एनं पौराणिक कथाएं हैं। धन की अधिकता होने पर अक्सर लोग विवेक खो देते हैं और धन का दुरूप्रयोग करने लगते हैं। धन का सद्पयोग हो, विकास हो,इसके लिए सद्बुद्धि का होना आवश्यक है।
गणेश जी बुद्धि के देवता है, जिनकी दो पत्नियां रिद्धि व सिद्धि और दो पुत्र हैं शुभ-लाभ। लक्ष्मी जी धन का प्रतिनिधित्व करती है एंव गणेश जी बुद्धि व विवेक के प्रतीक हैं। बिना विवेक के लक्ष्मी का शुभ-लाभ नहीं हो सकता। इसी कारणवश दिवाली में लक्ष्मी जी के साथ गणपति की अराधना का विधान है।
दिवाली की शुभ रात्रि में धन वृद्धि की कामना के साथ-साथ बुद्धि और विवेक की जाती है। क्योंकि अगर धन आया और विवेक न आया तो लक्ष्मी जी का सद्पयोग नहीं दुरूप्रयोग ही होगा। दिवाली में गणेश-लक्ष्मी की पूजा सभी लोग बड़े धूमधाम से करते हैं। लेकिन दिवाली में आखिर एक साथ ही पूजा क्यों होती है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं।
पौराणिक मान्यता -
दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन करने में यह भी कहा गया है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी भी सदैव रक्षा करें। हमें भी उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहे।
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी को सदा लक्ष्मी जी की बाईं ओर रखें। आदिकाल से ही पत्नी को 'वामांगी' कहा गया है। सदैव बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है। अत: पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिने हो ओर ही रहें, तभी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होगा।
धार्मिक विश्वास -
दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इससे 15 दिन पहले कार्तिक मास पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी का जनमोत्सव शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। रीति के अनुसार, मां लक्ष्मी की पूजा का मुख्य दिन शरद पूर्णिमा ही है। जबकि दिवाली के दिन मां काली की मुख्य होनी चाहिए। क्योंकि अमावस्या की रात मां कालरात्रि की रात होती है और शरद पूर्णिमा की रात धवल रात होती है। शरद पूर्णिमा पर ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुईं थी।
पौराणिक कथा-
पौराणिक ग्रन्थों में एक कथा का उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मी जी की पूजा गणेश जी के साथ क्यों होती है। एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की लालसा उत्पन्न हुई, उसने लक्ष्मी जी की आराधना प्रारम्भ की। साधु की आराधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और उसे साक्षात् दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज दरबार में पहुंचा।
अहंकार से लबरेज साधु ने राजा को धक्का मारा जिससे राजा का मुकुट जमीन पर गिर गया। राजा व उसके कर्मचारी गण उसे मारने के लिए दौड़े। किन्तु इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक काला नाग निकल कर भागने लगा। दरबार में उपस्थित सभी लोग आश्चर्य चकित हो गए और साधु को चमत्कारी समझकर उस की जय जयकार करने लगे।
राजा ने खुश होकर साधु को मंत्री बना दिया, क्योंकि उसी के कारण राजा की जान बची थी। साधु को रहने के लिए अलग से महल दिया गया वह शान से रहने लगा। राजा को एक दिन वह साधु भरे दरबार से हाथ खींचकर बाहर ले गया। यह देख दरबारी लोग भी पीछे भागे। सभी के बाहर जाते ही भूकंप आया और भवन खण्डहर में तब्दील हो गया। उसी साधु ने सबकी जान बचाई।
अतः साधु का मान-सम्मान बढ़ गया। जिससे उसमें अहंकार की भावना विकसित हो गई। एक गणेश जी की प्रतिमा राजा के महल में एक गणेश जी की प्रतिमा थी। एक दिन साधु ने वह प्रतिमा यह कह कर वहां से हटवा दी कि यह प्रतिमा देखने में बिल्कुल अच्छी नही लगती है। साधु के इस दुव्र्यहार से गणेश जी रुष्ठ हो गए। उसी दिन से उस मंत्री बने साधु की मतिभंग हो गई और वह उल्टा-सीधा काम करने लगा।
राजा ने उस साधु से नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया। साधु जेल में पुनः लक्ष्मी जी की आराधना करने लगा। लक्ष्मी जी ने दर्शन दे कर उससे कहा कि तुमने गणेश जी का अपमान किया है। अतः गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो।
गणेश जी की आराधना प्रारम्भ कर दी लक्ष्मी जी का आदेश पाकर साधु ने गणेश जी की आराधना प्रारम्भ कर दी। जिससे गणेश जी का क्रोध शान्त हो गया और गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आ कर कहा कि साधु को पुनः मंत्री बनाया जाए। राजा ने गणेश जी के आदेश का पालन किया और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया। इस प्रकार लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा साथ-साथ होने लगी। इस प्रकार दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी जी के साथ गणेशजी की भी आराधना की जाती है।
धार्मिक विश्वास -
दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इससे 15 दिन पहले कार्तिक मास पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी का जनमोत्सव शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। रीति के अनुसार, मां लक्ष्मी की पूजा का मुख्य दिन शरद पूर्णिमा ही है। जबकि दिवाली के दिन मां काली की मुख्य होनी चाहिए। क्योंकि अमावस्या की रात मां कालरात्रि की रात होती है और शरद पूर्णिमा की रात धवल रात होती है। शरद पूर्णिमा पर ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुईं थी।
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